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अश्मा॑ च मे॒ मृत्ति॑का च मे गि॒रय॑श्च मे॒ पर्व॑ताश्च मे॒ सिक॑ताश्च मे॒ वन॒स्पत॑यश्च मे॒ हिर॑ण्यं च॒ मेऽय॑श्च मे श्या॒मं च॑ मे लो॒हं च॑ मे॒ सीसं॑ च मे॒ त्रपु॑ च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्मा॑। च॒। मे॒। मृत्ति॑का। च॒। मे॒। गि॒रयः॑। च॒। मे॒। पर्व॑ताः। च॒। मे॒। सिक॑ताः। च॒। मे॒। वन॒स्पत॑यः। च॒। मे॒। हिर॑ण्यम्। च॒। मे॒। अयः॑। च॒। मे॒। श्या॒मम्। च॒। मे॒। लो॒हम्। च॒। मे॒। सीस॑म्। च॒। मे॒। त्रपु॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (अश्मा) पत्थर (च) और हीरा आदि रत्न (मे) मेरी (मृत्तिका) अच्छी माटी (च) और साधारण माटी (मे) मेरे (गिरयः) मेघ (च) और अन्न आदि (मे) मेरे (पर्वताः) बड़े-छोटे पर्वत (च) और पर्वतों में होनेवाले पदार्थ (मे) मेरी (सिकताः) बड़ी बालू (च) और छोटी-छोटी बालू (मे) मेरे (वनस्पतयः) बड़ आदि वृक्ष (च) और आम आदि वृक्ष (मे) मेरा (हिरण्यम्) सब प्रकार का धन (च) तथा चाँदी आदि (मे) मेरा (अयः) लोहा (च) और शस्त्र (मे) मेरा (श्यामम्) नीलमणि वा लहसुनिया आदि (च) और चन्द्रकान्तमणि (मे) मेरा (लोहम्) सुवर्ण (च) तथा कान्तिसार आदि (मे) मेरा (सीसम्) सीसा (च) और लाख (मे) मेरा (त्रपु) जस्ता (च) और पीतल आदि ये सब (यज्ञेन) सङ्ग करने योग्य व्यवहार से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग पृथिवीस्थ पदार्थों को अच्छी परीक्षा से जान के इनसे रत्न और अच्छे-अच्छे धातुओं को पाकर सबके हित के लिये उपयोग में लावें ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अश्मा) पाषाणः (च) हीरकादीनि रत्नानि (मे) (मृत्तिका) प्रशंसिता मृत् (च) साधारणा मृत् (मे) (गिरयः) मेघाः (च) अन्नादि (मे) (पर्वताः) ह्रस्वा महान्तः शैलाः (च) सर्वधनम् (मे) (सिकताः) (च) तत्रस्थाः पदार्थाः सूक्ष्मा बालुकाः (मे) (वनस्पतयः) वटादयः (च) आम्रादयो वृक्षाः (मे) (हिरण्यम्) (च) रजतादि (मे) (अयः) (च) शस्त्राणि (मे) (श्यामम्) श्याममणिः (च) शुक्त्यादि (मे) (लोहम्) सुवर्णम्। लोहमिति सुवर्णनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.२) (च) कान्तिसारादिः (मे) (सीसम्) (च) जतु (मे) (त्रपु) (च) रङ्गम् (मे) (यज्ञेन) सङ्गतिकरणयोग्येन (कल्पन्ताम्) ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मेऽश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनस्पतयश्च मे हिरण्यं च मेऽयश्च मे श्यामं च मे लोहं च मे सीसं च मे त्रपु च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः पृथिवीस्थान् पदार्थान् सुपरीक्ष्यैभ्यो रत्नानि धातूंश्च प्राप्य सर्वहितायोपयुञ्जीरन् ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पृथ्वीच्या गर्भातील पदार्थांची चांगली परीक्षा करावी व त्यातून रत्ने व चांगले धातू घ्यावेत आणि सर्वांच्या हितासाठी त्यांचा उपयोग करावा.